Jivan jine ki kala by Shri Ram Sharma Acharya free pdf download

 Jivan jine ki kala by Shri Ram Sharma Acharya

(जीवन जीने की कला)

हैलो दोस्तों,

आज मैं आप सभी के लिए एक बहुत ही प्रेणादायक पुस्तक जीवन जीने की कला लेकर आया हूं जो पंडित श्री राम शर्मा आचार्य जी के द्वारा लिखा गया है। आप नीचे दिए गए लिंक से डाऊनलोड कर सकते हैं।
जीवन जीने की कला
Jivan jine ki kala

प्रत्येक व्यक्ति में महान बनने की संभावना बीज रूप से विद्यमान है । प्रशिक्षण और अभ्यास द्वारा उनका विकास किया जा सकता है । मदारी , रीछ , बंदरों को भी , जिनमें न सूझ - बूझ होती है और न बौद्धिक क्षमता , प्रशिक्षण देकर मनुष्यों जैसा व्यवहार करना सिखा देते हैं , तो क्या कारण है कि बौद्धिक क्षमता , सहयोग की सुविधा और अन्यान्य विशेषताएँ होते हुए भी मनुष्य दीन - हीन ही बना रहे ? यदि प्रयत्न किया जाए तो प्रत्येक व्यक्ति महामानवों का सा व्यक्तित्व बना सकता है । आत्मदर्शन को ईश्वर प्राप्ति के समतुल्य बताया गया है । इस रहस्यवाद को यदि सरल शब्दों में समझना हो तो बोलचाल की भाषा में इतना कह देने से भी काम चल सकता है कि " अपनी अर्थात् जीवन की गरिमा को समझा जाए और उस कल्पवृक्ष की निष्ठापूर्वक साधना की जाए । " इतना समझा , स्वीकारा जा सके तो समझना चाहिए कि आत्मविज्ञान की वर्णमाला याद हो गई अन्यथा बिना अक्षर ज्ञान सीखे स्नातक बनने का दिवा स्वप्न देखने वालों को रोक कौन सकता है ? इसके लिए आवश्यकता इस बात की है कि हम मानवी गरिमा को समझें और उसके प्रति श्रद्धान्वित हों और महत्वपूर्ण बात यह है कि उसे अपनाने के लिए संकल्पवान निष्ठा परिपक्व करें । इन दो तथ्यों पर जितनी गंभीरतापूर्वक विचार किया जाएगा , उतना ही यह रहस्य प्रकट होता जाएगा कि प्रगति और दुर्गति कारण क्या है ? अंतरंग की निकृष्टता को लोगों की आँखों से छिपा भी रखा जा सकता है , पर उस सड़ांध से वह लपकन तो उठती ही रहेगी जो मवाद भरे फोड़े के भीतर से उठती है और खाने - सोने से लेकर सामाजिक परिकर और परिवार को हैरान करती है । कुसंस्कारिता की गहरी जड़ें अवांछनीय आकांक्षाओं और अनैतिक मान्यताओं में होती है । इसके जब अंकुर निकलते हैंआलस्य से लेकर दुर्व्यसन तक के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं और परिपक्व भी होते हैं , तो भ्रष्टता और दुष्टता के रूप में अपनी उदंडता का परिचय देते हैं । इन्हें रोका उखाड़ा कैसे जाए ? कैसे आत्मा पर छाए इन मलिनता के आवरणों से मुक्ति पाई जाए ? इसके लिए किसी वरदान अनुदान पर अवलंबित नहीं रहना चाहिए वरन् उस आधार को अपनाना चाहिए , जिसके बन जाने पर अनुदान बिना याचना के ही मिलने लगते हैं । नदियाँ गहरी होती हैं , फलतः उनमें पहाड़ों से लेकर खेतों तक का पानी अपने आप दौड़ते - दौड़ते पहुँचता है । सही रास्ता यही है , सही नीति यही है ।

Jivan jine ki kala book details

NameDescription
Book Name

Jivan jine ki kala

Page192
Writershree ram sharma aacharya
Size6 mb
CategoryHindimysterymotivationalLifestyle
LanguageHindi
SourceSource Medium
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